Tuesday, November 3, 2015

44 .ज़िंदगी – एक नज़रिया


ज़िन्दगी हमेशा चुनौतीपूर्ण होती है और चुनौती में बने रहना भी चुनौतीपूर्ण होता है .
एक जैसी परिस्थितियाँ किसी के लिए आसान और सहज होती है और किसी के लिए कठिनाइयाँ बन जाती है, समस्या बन जाती है .
हर नई परिथिति हर एक के लिए शुरू में कठिनाई ही होती है ,मुश्किल ही होती है , मुसीबत ही होती है लेकिन कुछ लोग मुश्किल को,कठिनाई को, मुसीबत को हार की वजह नहीं बनना देना चाहते और पीछे हटने की बजाय चुनौती मान कर आगे बढ़ कर उस परिस्थिति  का सामना करते है .सिर्फ सोचने का एक तरीका कि कठिनाई को कठिनाई न मानकर अभ्यास की कमी मानना और चुनौती की तरह स्वीकार करना उन्हें विजयी बना देता है , परिस्थिति को आसान बना देता है .
जबकि कुछ लोगों के लिए हर परिस्थिति कठिनाई ही होती है चूँकि ये उनके सोचने का तरीका होता है., नजरिया होता है लिहाज़ा उनकी असफलता की, हार की संभावनाएं बढ़ जाती है आख़िरकार वे ज़िन्दगी को भी एक समस्या मानने लगते है;उन्हें सिर्फ अपने सोचने का तरीका बदलने की जरुरत है .
पीक ऑवर में लोकल ट्रेन पकड़ना क्या है?
कुछ लोगों के लिए ट्रेन पकड़ना मुसीबत है लेकिन कुछ लोगों के लिए ये सिर्फ एक चुनौती है ;जिनके लिए ये मुसीबत है वे अगली ट्रेन का इंतज़ार करते है और ऑफिस पहुंचने में लेट हो जाते है और जिनके लिए चुनौती है वे वक्त से ऑफिस पहुँच जाते है .जबकि हकीकत में ट्रेन पकड़ना सिर्फ एक परिस्थिति भर है.
ज़िन्दगी इसी तरह की ढेरों घटनाओं का समूह भर है -आपके लिए घटनाएँ मुसीबत रही है या अभ्यास करते-करते सहज हो गई है ये आपकी सोच पर आपके नज़रिये पर निर्भर है और इसी पर आपकी सफलता या असफलता भी निर्भर है .
ये आप पर है कि आप ज़िन्दगी की ट्रेन में अगली किसी घटना का इंतज़ार करते है या इसी घटना को चुनौती मानकर अनुकूल बना लेते है .मैं वापिस दोहरा दूँ कि पीक ऑवर में ट्रेन में चढ़ना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है और इस चुनौती में बने रहना भी एक चुनौती है .

सुबोध-अक्टूबर ४,२०१५

1 comment:

dr.mahendrag said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति